इस हफ्ते मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनावों ने भारतीय शेयर बाजार पर भारी दबाव डाला, जिससे शुक्रवार, 4 अक्टूबर को भारतीय बेंचमार्क इक्विटी इंडेक्स में लगातार पाँचवे सत्र में गिरावट दर्ज की गई।
शुक्रवार के कारोबारी सत्र में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में भारी गिरावट दर्ज की गई। बढ़ती चिंताओं के कारण निफ्टी 50 0.81% गिरकर 25,014 पर बंद हुआ, क्योंकि इस बात की चिंता बढ़ रही है कि इजरायल ईरान के तेल संयंत्रों को निशाना बनाकर उसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इस पूरे हफ्ते में 4.45% की कुल गिरावट दर्ज किया गया, जो जून 2022 के बाद निफ्टी की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट रही है। उस समय, निफ्टी 5.61% की गिरावट दर्ज किया गया था।
इस हफ्ते बाजार में हुए सुधार के कारण निफ्टी में अकेले 1,129 अंकों की गिरावट आई। इसी तरह, S&P BSE सेंसेक्स में भी 4.54% की गिरावट दर्ज की गई, जो 82,000 अंक के नीचे गिरकर 81,688 पर बंद हुआ।
सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्टर
सबसे अधिक प्रभावित सेक्टरों में, रियल एस्टेट सबसे ऊपर रहा, जहाँ निफ्टी रियल्टी इंडेक्स में इस हफ्ते 8.7% की भारी गिरावट आई। इसके बाद निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज 6.2% और निफ्टी ऑटो में 5.7% की गिरावट रही।
कच्चे तेल की कीमतों में 10% की उछाल
मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव ने कच्चे तेल की कीमतों को भी बढ़ावा दिया है। शुक्रवार को ब्रेंट क्रूड वायदा 1% से अधिक बढ़ गया, जिससे इस हफ्ते की कुल बढ़त 10% तक पहुँच गई। मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव का तेल की कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, यह देखते हुए कि यह क्षेत्र वैश्विक तेल उत्पादन का एक-तिहाई हिस्सा है, और दुनिया के कच्चे तेल का पाँचवाँ हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
भारतीय कॉर्पोरेट्स बढ़ते कच्चे तेल की कीमतों और परिवहन लागत के साथ-साथ ईरान-इज़राइल संघर्ष के चलते हवाई शिपिंग मार्गों में हो रहे व्यवधानों को लेकर चिंतित हैं। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि का असर उड्डयन, ऑटोमोटिव, पेंट्स, टायर्स, सीमेंट, रसायन, सिंथेटिक वस्त्र, और फ्लेक्सिबल पैकेजिंग जैसे कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
बढ़ती महँगाई और आर्थिक विकास पर प्रभाव
ICRA के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि भारत के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महँगाई के लिए खतरा पैदा कर सकती है। साथ ही, इसका प्रभाव उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महँगाई और वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी (GDP) विकास दर पर भी पड़ सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि से आर्थिक विकास धीमा पड़ सकता है।
इसके अलावा, बढ़ती महँगाई के दबाव के कारण ब्याज दरें लंबे समय तक ऊँची बनी रह सकती हैं, जब तक कि यह भू-राजनीतिक संकट हल नहीं हो जाता।
तीन दिन में एफपीआई ने निकाले ₹30,000 करोड़ से ज्यादा
हालिया बाजार गिरावट के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने सबसे बड़े विक्रेताओं की भूमिका निभाई, जिन्होंने पिछले तीन कारोबारी सत्रों में भारतीय बाजार से करीब ₹30,613 करोड़ निकाल लिए। इसमें से एक बड़ा हिस्सा केवल गुरुवार को ही निकला, जब ₹15,243 करोड़ की निकासी हुई। यह पिछले चार सालों में FPIs द्वारा एक दिन में सबसे बड़ी निकासी रही है।
FPIs द्वारा चीन में निवेश वापस शिफ्ट करने की संभावनाएँ बढ़ती जा रही हैं, खासकर जब बीजिंग ने अपनी संघर्षरत अर्थव्यवस्था को सुधारने और अपने पूँजी बाजार को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत उपायों की घोषणा की है।
हालाँकि, इस पर विश्लेषकों में मतभेद हैं। जबकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत की विकास क्षमता का आकर्षण चीन के आकर्षण पर भारी पड़ सकता है, वहीं अन्य ने चेतावनी दी है कि भारत का अपेक्षाकृत उच्च मूल्यांकन निवेशकों को हतोत्साहित कर सकता है।
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